रसेल की द्वैतारक परिकल्पना :
रसेल की द्वैतारक परिकल्पना वर्ष १९३७ में दी | रसेल के अनुसार हमारे सौर मंडल में दो तारा हुआ करते थे एक अपना तारा और दूसरे तारे जो आकार में छोटा था उसको साथी तारा बोला |
इसी बीच एक बहुत बड़े आकार का तीसरा तारा इनके नजदीक से गुजरा | चूंकि सूर्य और तीसरा तारा बीच दूरी काफी ज्यादा थी इसलिए तीसरी तारे के आकर्षण का प्रभाव सूर्य पर नहीं पड़ा लेकिन साथी तारे पर प्रभाव पड़ा क्योकि साथी तारे और तीसरे तारे के बीच की दुरी कम थी |
जब तीसरा तारा साथी तारा के पास से गुजरा तो गुरुत्वाकर्षण एवं ज्वारीय बल के कारण साथी तारा के ऊपरी सतह पर पदार्थ बाहर निकल गया और तीसरे तारे के दिशा[ साथी तारे के सुरुवाती दिशा के बिपरीत ] में सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाने लगा |
अंत में , इस निकली हुए पदार्थ के ठंडा होने से गृह व् उपग्रह बने | साथी तारा के केंद्र से चट्टानी पार्थिव गृह जैसे बुध, शुक्र, पृथ्वी , और मंगल गृह बने और साथी तारे के ऊपरी भाग के हल्के पदार्थ से गैसीय गृह जैसे बृहस्पति, शनि, वरुण,अरुण बने |
रसेल की द्वैतारक परिकल्पना का मूल्यांकन:
- रसेल की द्वैतारक परिकल्पना सूर्य और ग्रहों की दूरी तथा ग्रहो के प्रकार ( पार्थिव व् गैसीय गृह ) तथा ग्रहों के वर्तमान कोणीय संवेग की व्याख्या करने सक्षम है |
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