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अरब भूगोलवेत्ताओं का भूगोल के विकास में योगदान UPSC | मानव भूगोल में संदर्श | मानव भूगोल UPSC

 प्रारंभिक अरब भूगोलवेत्ता का विचार ग्रीक भूगोलवेत्ता के विचारों से अत्यधिक प्रभावित था जैसे:

  • पृथ्वी गोलाकार सिद्धांत
  • अक्षांश-संबंधी सिद्धांत
  • पृथ्वी केंद्रीयता सिद्धांत

मध्यकाल के दौरान [ दसवीं और अठारवीं शताब्दी ] अरब भूगोलवेत्ताओं ने भूगोल में अपने नये विचारों का योगदान दिया।


निम्नलिखित कुछ प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता हैं:

  • अल-मसुदी (896–956)
  • अल-मुक़द्दसी (945–1000)
  • इब्न हाकल (10 वीं शताब्दी)
  • अल-इड्रिसी (1100–1165)
  • इब्न जुबायर (1145–1217)
  • इब्न बट्टुटा (1304-1377)
  • इब्न खल्दुन (1332-1406)



अल-मसुदी (896–956):

अल-मसुदी एक अरब इतिहासकार और भूगोलवेत्ता थे, जिन्होंने "सोने और रत्नों की खानों के मीडोज" लिखा था। इस काम में भौगोलिक जानकारी का खजाना था, जिसमें विभिन्न संस्कृतियों, रीति -रिवाजों और परिदृश्यों का वर्णन किया गया था, जो उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान सामना किया था।

अल मसूदी, भारत की अपनी यात्रा के दौरान, मानसून नाम की, जो अरब शब्द "मौसम" से लिया गया है, जिसका अर्थ है हवाओं का उलट।


अल-मुक़द्दसी (945–1000):

अल-मुक़द्दसी ने इस्लामी दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विवरण दिया। इसमें विस्तृत भौगोलिक और सांस्कृतिक जानकारी शामिल थी।


इब्न हाकल (10 वीं शताब्दी):

इब्न हॉकल "किताब अल-मैसालिक वा अल-ममलिक" (द बुक ऑफ रूट्स एंड रियलम्स) के लेखक थे, जो एक यात्रा वृत्तांत था जो मध्ययुगीन इस्लामिक दुनिया के भूगोल, संस्कृतियों और व्यापार मार्गों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता था।



अल-इदरीसी (1100–1165):

अल-इदरीसी को अपने काम "तबुला रोजेरियाना," एक विश्व मानचित्र और साथ में पाठ के साथ जाना जाता है, जो उस समय के भौगोलिक ज्ञान को संकलित करता है। उनका नक्शा इसकी सटीकता और विभिन्न क्षेत्रों के व्यापक प्रतिनिधित्व के लिए उल्लेखनीय था।


इब्न जुबायर (1145–1217):

इब्न जुबायर एक यात्री और भूगोलबाज थे, 12 वीं शताब्दी में स्पेन से मक्का तक की तीर्थयात्रा के इब्न जुबायर के खाते में उनके द्वारा देखी गई भूमि के सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक पहलुओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की गई थी।


इब्न बट्टुटा (1304–1377):

यद्यपि मुख्य रूप से एक यात्री और खोजकर्ता के रूप में जाना जाता है, इब्न बट्टुटा की व्यापक यात्रा ने मध्ययुगीन भूगोल की समझ में योगदान दिया। उनके द्वारा देखी गई भूमि के उनके विस्तृत खातों ने अपने समय के दौरान दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की।


इब्न खल्दुन (1332–1406):

इब्न खलदुन को अक्सर इतिहासलेखन और समाजशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है, लेकिन उनके काम में महत्वपूर्ण भौगोलिक अंतर्दृष्टि भी थी। उनके "मुकद्दीमा" ने भूगोल, पर्यावरण और मानव समाजों के बीच परस्पर क्रिया पर चर्चा की।



भौगोलिक विकास में अरब भूगोलवेत्ता का योगदान निम्न लिखित है:


भू-आकृति विज्ञान के क्षेत्र में:

अल बिरूनी का योगदान:

  • अल बिरूनी ने शैल के गोलाकार होने का कारण बताया। इन्होने बताया कि जब चट्टानें पर्वतो से टूटकर गिरते है और जब यह नदी घाटियों से होते हुए आगे बढ़ते है तो पत्थर गोलाकार आकार ले लेता है।
  • अल बिरूनी ने जलोढ़ मिट्टी के नाम भी दिए और कहा कि यह पहाड़ से बहुत दूर पाई गई है।
  • अल बिरूनी ने वनस्पति पर जलवायु की प्रभावों की व्याख्या की थी।

अन्य अरब भूगोलवेत्ता ने बताया की पर्वत शिखर, कठोर चट्टान जो अपरदन के प्रतिरोध होते है उनसे बने होते है। 


समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में:

  • अरब भूगोलवेत्ताओं ने ज्वार आने का मुख्य कारण चंद्रमा और सूर्य के आकर्षण शक्ति को बताया जिसके कारण समुंद्री जल ऊपर उठते है ।
  • अल मसूदी ने बताया कि समुद्र के पानी में लवणता के उपस्थिति के कारण पानी का रंग खारा होता है और महासागरों के लवणता का मुख्य श्रोत भूभाग बताया। भूभाग से नमक समुन्द्र के पानी में आते है ।


जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में:

  • भारतीय मानसून का वर्णन अल मसूदी ने किया जो एक अरब भूगोलवेत्ता थे। 
  • अल मसूदी ने भारत की यात्रा के दौरान यहाँ के मौसमी पवन का नाम मानसून दिया जो अरब शब्द "मौसम" से बना हुआ है जिसका अर्थ है हवाओं का उलटना। 
  • अल बलख ने  दुनिया का पहला जलवायु एटलस (किताब-उल-अशकल) तैयार किया था ।
  • अल मगदिसी ने वनस्पति और जलवायु परिवर्तन के आधार पर विश्व जलवायु को 14 क्षेत्रों में विभाजित किया था ।


मानव भूगोल के क्षेत्र में:

  • अरब भूगोलवेत्ताओं ने बताया कि जलवायु और वनस्पति, दोनों ही क्षेत्र-विशिष्ट समाज विकसित होने में  योगदान देते है और उसके स्वरूपों को प्रभवित करते हैं। 
  • इब्न-खलदुन ने बताया कि ठंडे क्षेत्रों की तुलना में गर्म क्षेत्र के लोग अधिक भावुक होते हैं, और इस तरह इब्न-खलदुन ने स्थान-विशिष्ट भूगोल का जन्म दिया।
  • इब्न-खलदुन ने यह भी बताया कि उत्तरी गोलार्ध दक्षिणी गोलार्ध की तुलना में अधिक घनी आबादी वाला क्षेत्र है। और भूमध्य रेखा के पास वाले क्षेत्र में विरल आबादी पायी जाती है और उपजाऊ भूमि वाले क्षेत्र में बहुत घनी आबादी होती है।
  • इब्न बतूता (1304–1377) ने रेगिस्तान वाले क्षेत्र मानव अधिवास का उल्लेख किया है। इन्होने बताया कि रेगिस्तान में घर बनाने का अलग तरीका होता है और घर बनाने में जो निर्माण सामग्री लगती थी उसका भी उल्लेख मिलता है ।

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1 Comments:

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11 February 2022 at 00:31 ×

Sir aap itna mehnat kar rahe hain I don't have the meaningful words to explain your efforts for us and how you conclude statement and the ways of your presentation is outstanding...

Congrats bro Geographical thought you got PERTAMAX...! hehehehe...
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