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भारत में भू संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं कौन-सी है ?उनका निदान कैसे किया जाए?

 प्रश्न। 

भारत में भू संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं कौन-सी है ?उनका निदान कैसे किया जाए? 

( NCERT class 12, अध्याय 5: भूसंसाधन तथा कृषि , भारत लोग और अर्थव्यवस्था)

उत्तर। 

हरित क्रांति के बाद, आधुनिक कृषि में दोषपूर्ण कृषि तरीको के कारण भारत में भूमि संसाधनों के साथ गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं हैं। दोषपूर्ण कृषि तरीको में  अति-सिंचाई, जल भराव, मोनो-फसल पैटर्न, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग शामिल है।

भारत में भूमि संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं निम्नलिखित हैं:

  • लवण और क्षारीकरण कारण भूमि संसाधनों की गुणवत्ता का ह्रास।
  • मोनो-फसल पैटर्न और रासायनिक उर्वरकों के मिट्टी की उर्वरता में कमी
  • मृदा प्रोफाइल में जहरीली रसायनो की सांद्रता।
  • मृदा अपरदन से मृदा संसाधनों ह्रास। 

दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों जैसे कि अति-सिंचाई और जलभराव के कारण मृदा क्षारीयकरण और लवणीकरण  हो जा रहा है। अति सिंचाई करके से वाष्पीकरण भी अधिक होता है जिससे जल में उपस्थित लवण मृदा में ही रह जाते है और धीरे धीरे मृदा लवणीकरण हो जाता है, इससे मृदा की उर्वरकता में कमी आती हैं। 

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भूमि गुणवत्ता में कमी का मृदा क्षारीयकरण एक बड़ी समस्या है।

रसायनो उर्वरकों और कीटनाशकों के अति प्रयोग से भी भूमि की गुणवत्ता में कमी आती है और मृदा प्रोफाइल में जहरीली रसायनो की सांद्रता बढ जाती हैं । इससे मृदा कठोर तथा जल संग्रह करने की क्षमता में कमी के साथ साथ सूक्ष्म जीव जैसे केछुवा में कमी देखने को मिलता जिससे फसल उत्पादकता में कमी आती है। इस प्रकार के पर्यावरणीय समस्या पुरे भारत में देखने को मिल रही हैं। 

मोनो क्रॉपिंग (केवल एक फसल उगाना) और उचित फसल रोटेशन प्रथाओं का पालन नहीं करने से मिट्टी में पोषक तत्वों के एक विशेष समूह की कमी हो जाती है। कृषि वर्ष में कम से कम एक बार फलीदार फसलें (दालें) न उगाने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण जैसे प्राकृतिक निषेचन की प्रक्रिया कम हो जाती है।

मृदा अपरदन से भूमि संसाधनों का ह्रास के साथ साथ मृदा उर्वरता का ह्रास होता है। आर्द्र क्षेत्रों में अचानक आई बाढ़ से मृदा अपरदन का मुख्य कारण होता है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वायु मृदा अपरदन का मुख्य कारण होता है। वनाच्छादित और पहाड़ी क्षेत्रों में खनन और वनों की कटाई से मिट्टी का गंभीर क्षरण होता है।

कृषि में पर्यावरणीय समस्याएं को निदान :

भारत में भूमि संसाधनों की पर्यावरणीय समस्याओं को दूर करने के लिए सतत कृषि पद्धतियों की आवश्यकता है। सतत कृषि प्रथाओं में शामिल हैं:

  • कुशल सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप और स्प्रिंकल सिंचाई विधियों का उपयोग।
  • रासायनिक खाद का इष्टतम उपयोग।
  • हरी खाद और जैव खाद का प्रयोग करें।
  • फसल चक्रण का उपयोग करना।
  • वनीकरण, कंटूर बाइंडिंग आदि द्वारा मिट्टी के कटाव को रोकना।

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