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देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।

 प्रश्न। 

 देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए। 

( NCERT class 12, अध्याय 6: जल संसाधन , भारत लोग और अर्थव्यवस्था)

उत्तर। 

भारत में विश्व के सतही क्षेत्रफल का लगभग 2.45 प्रतिशत, विश्व जल संसाधन का 4 प्रतिशत और विश्व की जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत है। भारत में औसतन 118 सेमी वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा से भारत  में कुल जल उपलब्धता लगभग 4000 घन किमी प्रति वर्ष  होनी चाहिए। लेकिन, स्थलाकृति और अन्य बाधाओं के कारण देश में कुल उपयोग करने योग्य जल संसाधन , 4000 क्यूबिक किमी में से केवल 1122 क्यूबिक किमी ही है । 1122 घन किमी में से 690 घन किमी सतही जल और 432 घन किमी भूजल का उपयोग किया जा सकता है। यहां भूजल की तुलना में अधिक सतही जल उपयोग के लिए उपलब्ध है।

भारत में जल संसाधनों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • सतही जल संसाधन। 
  • भूजल संसाधन। 
  • लैगून और पश्च जल (बैकवाटर)

सतही जल संसाधन;

भारत में सतही जल के चार प्रमुख स्रोत हैं - नदियाँ, झीलें, तलैया, और तालाब। नदियों में सालाना औसतन लगभग 1869 क्यूबिक किमी पानी बहता है। हालांकि, स्थलाकृति और अन्य बाधाओं के कारण, केवल 690 घन किमी सतही जल उपयोग के लिए उपलब्ध है। वर्षा और हिमांद्री जल ( उदाहरण हिमालयी नदियाँ बारहमासी प्रकृति की हैं) नदियों में जल की उपलब्धता के प्रमुख स्रोत हैं। हिमालयी नदियाँ जैसे कि सिंधु , गंगा और ब्रह्मपुत्र प्रकृति में बारहमासी हैं, अन्य क्षेत्रो की अपेक्षाकृत इनके बेसिन में अधिक वर्षा होती है, और इनमें विशाल जलग्रहण क्षेत्र होते हैं, इसलिए इननदियों में पानी का एक बड़ा वार्षिक प्रवाह होता है।

गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों में भारत के कुल पुनःपूर्ति योग्य जल का लगभग 46 प्रतिशत है।

भूजल संसाधन;

देश में कुल पुनःपूर्ति योग्य सालाना भूजल संसाधन लगभग 432 घन किमी हैं। मैदानी क्षेत्र जैसे उत्तरी मैदान और तटीय मैदान जलोढ़ मिट्टी के भंडार हैं, इसलिए वे भूजल पुनर्भरण के लिए अच्छे हैं क्योंकि वर्षा जल जलोढ़ मिट्टी से आसानी से रिसता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में पठारों की तुलना में अधिक भूजल उपलब्ध है।

लैगून और पश्च जल (बैकवाटर);

केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में समुद्र तट की दंतुरित (इंडेंट ) प्रकृति के कारण, लैगून और पश्च जल के विशाल जल संसाधन उपलब्ध है जो मुख्य रूप से मछली पालन , और कुछ फसलों जैसे धान और नारियल के लिए सिंचाई के उद्देश्य में उपयोग में लाया जाता हैं।  लैगून और पश्च जल प्रकृति में खारा है।

भारत में जल संसाधन समान रूप से वितरित नहीं हैं, भारत के जल संसाधन मुख्य रूप से मानसून वर्षा पर निर्भर हैं, और पूरे भारत में मानसून की वर्षा अवधि और तीव्रता दोनों में भिन्न होती है।

निम्नलिखित कारक हैं जो जल संसाधनों के स्थानिक वितरण को निर्धारित करते हैं:

  • वर्षा की असमान वितरण। 
  • उच्चावच तथा स्थलाकृति। 
  • नदी की बारहमासी प्रकृति। 
  • लैगून और बैकवाटर की उपलब्धता। 

भारत में जल संसाधनों का मुख्य स्रोत वर्षा है। यद्यपि भारत की औसत वार्षिक वर्षा लगभग 118 सेमी है, तथापि, सामयिक (लौकिक) और स्थानिक दोनों प्रकार से वर्षा में बड़ी विविधता है। कुछ क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है जैसे मेघालय (मावसिनराम में वार्षिक वर्षा 1187 सेमी है ) और कुछ क्षेत्रों में बहुत कम वर्षा होती है जैसे राजस्थान क्षेत्र का पश्चिमी भाग (लगभग 12 से 30 सेमी वार्षिक हैं )। इस प्रकार वर्षा में परिवर्तनशीलता भारत में जल संसाधनों में परिवर्तनशीलता का कारण बनती है।

उच्चावच और स्थलाकृति भी देश में जल संसाधनों के असमान वितरण के लिए प्रमुख निर्णायक कारक हैं। मैदानी क्षेत्र भूजल रिचार्जिंग के लिए अच्छे होते हैं क्योंकि उनके पास गहरे जलोढ़ निक्षेप होते हैं जो सतही जल को भूमि में आसानी से रिसने देते है और मैदानी क्षेत्र में आसानी से जलभराव होता है जिससे जल को जमीन में रिसने के लिए अधिक मिल जाता हैं। अत: मैदानी क्षेत्रों में भूजल आसानी से उपलब्ध होता है जबकि पठारी क्षेत्र और पहाड़ी क्षेत्र भूजल पुनर्भरण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं हैं, इसलिए पठारी और पहाड़ी क्षेत्रों में केवल सतही जल उपलब्ध है।

हिमालयी नदियाँ बारहमासी प्रकृति (वर्ष भर पानी का प्रवाह होता हैं ) की है जिससे 

 उत्तरी मैदानी इलाकों में जल साल भर मिलती रहती है जबकि प्रायद्वीपीय नदी की मौसमी प्रकृति होने के कारण बारिश के मौसम के अलावा पानी की कमी देखने को मिलती है।

केरल, गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में लैगून और बैकवाटर संसाधन हैं जिनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों जैसे मछलीपालन और धान और नारियल के लिए सिंचाई के लिए किया जा सकता है, इसलिए इन क्षेत्रों का अपना अलग फायदा है।

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