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बिहार में ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप

ग्रामीण बस्तियों के बारे में:

जैसा कि हम जानते हैं कि बस्ती एक ऐसी जगह है जहां मानव वहां घर बनाकर रहते हैं। गाँव, शहर, कस्बे और बड़े नगर मानव बस्तियों के उदाहरण हैं।

आर्थिक गतिविधियों में लोगों की भागीदारी के आधार पर, बस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं-ग्रामीण बस्तियाँ और नगरी बस्तियाँ।

ग्रामीण बस्तियाँ वे बस्तियाँ हैं जिजहां रहने वाले अधिकांश लोग खेती, मछली पकड़ने, पशुपालन और खनन जैसी प्राथमिक गतिविधियों में शामिल हैं। गाँव और हैमलेट (छोटे गांव ) ग्रामीण बस्तियों के उदाहरण हैं।


बिहार में ग्रामीण बस्तियों का पैटर्न;

जैसा कि हम जानते हैं कि ग्रामीण बस्तियों में रहने वाले लोग प्राथमिक गतिविधियों में शामिल होते हैं और प्राथमिक गतिविधियाँ सीधे भौतिक वातावरण जैसे उपजाऊ भूमि, पानी की उपलब्धता, खनिजों की उपलब्धता आदि पर निर्भर होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग उपजाऊ भूमि , पानी की उपलब्धता, खनिज संसाधन, और परिवहन लाइन (सड़कें और रेलवे) के निकट बसना पसंद करते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार राज्य की 88.7% आबादी ग्रामीण बस्तियों में रहती है; ग्रामीण क्षेत्रों में आबादी का इतना बड़ा हिस्सा रहने का कारण उपजाऊ भूमि और बारहमासी नदी स्रोतों की उपलब्धता है।

बिहार में, जाति व्यवस्था की उपस्थिति मजबूत है जो राज्य के अधिकांश क्षेत्र में ग्रामीण बस्तियों के पैटर्न को प्रभावित करती है।

बिहार में ग्रामीण बस्तियों का पैटर्न काफी हद तक जलोढ़ मृदा की उपलब्ध्ता, जल संसाधन की पहुंच,  और सामाजिक-आर्थिक कारकों (जाति व्यवस्था और आदिवासी समुदाय) से प्रभावित होता है।


बिहार में ग्रामीण बस्तियों के तीन प्रमुख पैटर्न देखने को मिलते हैं:


संकुलित या सघन बस्तियां;

एक संकुल बस्ती में, लगभग सभी ग्राम समुदाय आमतौर पर एक ही स्थान पर रहते है। 

संकुलित या सघन बस्तियां आमतौर पर बिहार में कम दीखते है क्योकि जाती व्यवस्था की मजबूती पकड़ की कारण सभी समुदाय एक ही जगह पर रहना पसंद नहीं करते है। लेकिन समय के साथ , जनसख्या घनत्व में बृद्धि के कारण , सघन बस्तियां आमतौर पर बिहार के पश्चिमी और मध्य भागों जैसे सीवान, बक्सर, मुजफ्फरपुर, वैशाली आदि में पाई जाती हैं।

दक्षिण पश्चिमी बिहार में अधिक सघन बस्तियाँ दूसरे क्षेत्रो से ज्यादा हैं।

संकुलित बस्तियाँ छोटे भौगोलिक क्षेत्र में होते है और घरों किए बीच दूरिया कम होती हैं ।


अर्ध-संकुल बस्तियाँ:

बिहार के गंगा के मैदानों के अधिकांश हिस्सों जहाँ पर किसी एक जाति की प्रबल उपलब्धता है वहा पर अर्ध-संकुल बस्तियाँ प्रचलित हैं। 

अर्ध-संकुल बस्तियों में, सामान्य रूप से प्रमुख समुदाय गाँव के मध्य भाग पर रहता है, जबकि दिहाड़ी मजदूर या समाज के निचले तबके के लोग गाँव के बाहरी इलाके में बस जाते हैं।


हेमलेट ( पल्लीकृत) बस्ती

हेमलेट ( पल्लीकृत) बस्ती बिहार में उन क्षेत्रो में पाए जाते है जहां पर कई जातियों के लोग रहते हैं। 

बड़े गाँवों को आम तौर पर कई टोला या मोहल्ला (विशेष समुदाय के साथ रहने वाले गाँव का छोटा क्षेत्र) में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक टोला में एक विशेष जाति के लोग रहते हैं। 

गंगा घाघरा दोआब के अधिकांश भाग में हेमलेट बस्तियाँ प्रमुख हैं। लेकिन यह बिहार के लगभग मैदानी इलाकों के साथ-साथ बिहार के शिवालिक रेंज (पश्चिम चंपारण जिले) और बिहार के पूर्वी और दक्षिणी पठार (कटिहार, जमुई, बांका और पूर्णिया जिले जैसे आदिवासी क्षेत्र) क्षेत्र में पाए जाते हैं।

Try to solve the following questions:

  • बिहार में पायी जाने वाली ग्रामीण बस्तियों के वितरण प्रतिरूप का वर्णन कीजिए । ( 65th BPSC geography)
  • बिहार में पाए जाने वाले ग्रामीण अधिवास प्रतिरूपो का वर्णन कीजिए। ( 60-62nd BPSC geography)
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