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पारिस्थितिकी तंत्र पर मनुष्य का प्रभाव

 पारिस्थितिकी तंत्र प्रकृति की एक संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई है, जहां जीवधारी आपस में और आसपास के भौतिक वातावरण के साथ भी परस्पर अंतःक्रिया करते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र के उदाहरण तालाब पारिस्थितिकी तंत्र, चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र, वन पारिस्थितिकी तंत्र, रेगिस्तान पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र आदि हैं। पारिस्थितिक तंत्र में स्थलीय और जलीय पारिस्थितिक तंत्र दोनों शामिल हैं। पारिस्थितिक तंत्र बहुत छोटे ( तालाब ) और बहुत बड़े (जंगल , समुन्द्र ) भी हो सकते हैं। 

मानव पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है लेकिन मानव ने पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्येक घटक (जैविक और अजैविक) को प्रभावित किया है और मानव ने पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न घटकों के बीच संबंधों (जैसे ऊर्जा प्रवाह, खाद्य वेब, खाद्य श्रृंखला, पोषक चक्र, और सहजीवन संबंध) को भी प्रभावित किया है।


पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव के प्रभाव:

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

प्रदूषण :

मानव ने पारिस्थितिकी तंत्र के लगभग सभी अजैविक घटकों जैसे हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित कर दिया है। अजैविक घटकों में प्रदूषण से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को कम कर दिया है। उदाहरण के लिए, जल निकायों में प्रदूषण तालाब पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को बुरी तरह प्रभावित करता है।

पारिस्थितिक तंत्र में बढ़ते प्रदूषण स्तर से पारिस्थितिकी तंत्र की आत्मनिर्भर प्रकृति को कमजोर कर दिया है।

पारिस्थितिकी तंत्र के क्षेत्र में कमी:

मानव ने पारिस्थितिक तंत्र के क्षेत्रों को अतिक्रमण करके कम कर दिया है। लगभग सभी पारिस्थितिक तंत्र क्षेत्रों को कम कर दिया गया है चाहे वह वन पारिस्थितिकी तंत्र हो, नदी पारिस्थितिकी तंत्र हो, या तालाब पारिस्थितिकी तंत्र हो।

वनों की कटाई ने वन पारिस्थितिकी तंत्र की भूमि को कम कर दिया है। वनों की कटाई वन क्षेत्रों का गैर-वनों में रूपांतरण है। जैसा कि अनुमान है, वनों की कटाई के कारण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 40% वन पारिस्थितिकी तंत्र खो गया था।

मृदा,  घास के मैदान और वन पारिस्थितिकी तंत्र जैसे कई पारिस्थितिक तंत्रों का एक बुनियादी आवश्यक घटक है। उपजाऊ मिट्टी के विकास में सैकड़ों साल लगते हैं और विशेष रूप से स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र काफी हद तक मृदा पर निर्भर होते हैं। गहन खेती, अप्रतिबंधित चराई, वनों की कटाई, और खराब सिंचाई प्रथाओं जैसी मानवीय गतिविधियों से मृदा अपरदन हो जाता है। ऊपरी मिट्टी का अपरदन  पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को कम करता है और ऊर्जा प्रवाह को बाधित करता है।

स्लैश एंड बर्न कृषि या स्थानांतरित (झूम खेती ) खेती भी जैविक और अजैविक दोनों घटकों के पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान का कारण बनती है।


जैव विविधता का नुकसान;

मानवीय गतिविधियों के कारण जैव विविधता  में कमी आयी है और कुछ जीव तो विलुप्त हो गए हैं और बहुत सारे जीव विलुप्त के कगार पर हैं।  जैव विविधता में कमी से ऊर्जा प्रवाह और पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य में गड़बड़ी का कारण बनते हैं। उदाहरण के लिए, चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र में घास की कमी से चरने वाले जानवरों जैसे हिरण, बकरी, खरगोश आदि के भोजन पर असर पड़ता है। हिरण के जनसँख्या में कमी से शेर, बाघ , जैसे मांसाहारी जानवरो की भी जनसँख्या कम हो जाती हैं। 


जैव आवर्धन:

जैव आवर्धन मानवीय गतिविधियों के कारण होता है जो जीवों में प्रदूषण का कारण बनते हैं। जैव आवर्धन से तात्पर्य क्रमिक पोषी स्तरों पर विषाक्त पदार्थों (जैसे डीडीटी और पारा) की सांद्रता में वृद्धि से है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जीव इन विषाक्त पदार्थों को ना ही पचा पाते है और ना ही उसे उत्सर्जन कर पाते हैं और यह अगले उच्च पोषी स्तर वाले जीवो में चला जाता है। उदाहरण के लिए, डीडीटी की एक उच्च सांद्रता से पक्षियों में कैल्शियम चयापचय में कमी आती है, जिससे अंडे के छिलके पतले हो जाते हैं और समय से पहले टूट जाते हैं, जिससे पक्षियों की आबादी में गिरावट आती है।


सांस्कृतिक या त्वरित यूट्रोफिकेशन;

पिछली शताब्दी के दौरान, दुनिया के सभी हिस्से में तालाब सीवेज, कृषि और औद्योगिक कचरे से नष्ट हो गई हैं। झीलों का पानी नाइट्रेट्स और फॉस्फेट से दूषित होता है। यह शैवाल के अतिवृद्धि और झील के पानी में घुलित ऑक्सीजन की कमी का कारण बनता है, जो मछली जैसे झील के जानवरों की मृत्यु का कारण बनता है। इसके अलावा, पानी में मछलियों और अन्य जानवरों के अपघटन से पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे झील में उपस्थित सभी जीवों की मौत हो जाती है।


पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के उपाय;

मनुष्य को इन वातावरणों और पारिस्थितिक तंत्रों के नुकसान के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। मानव जनसख्याँ में लगाम के साथ साथ पारिस्थितिकी तंत्र के संसाधनों के सतत उपयोग से पारिस्थितिकी तंत्र की कई समस्याओं का समाधान हो सकता है।

वनीकरण से वन पारिस्थितिकी तंत्र के साथ साथ तालाबों और नदी पारिस्थितिक तंत्र जैसे अन्य पारिस्थितिक तंत्रों के स्वास्थ्य में सुधार करेगी।

मिट्टी के अपरदन को रोकने से स्थलीय पारितंत्रों और जलीय पारितंत्रों दोनों को बचाया जा सकता है (अवसादन और वृद्धावस्था को कम करके)।

पृथ्वी के सभी हिस्सों में विकास का सतत तरीका पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करेगा।


Try to solve the following questions:

  • पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव के प्रभाव की विवेचना कीजिए तथा पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के उपाय सुझाइए । ( 65th BPSC geography)
  • पारिस्थितिक तंत्र की संकल्पना क्या हैं ? पारिस्थितिकी तंत्र पर औद्योगिक मानव के संघात की चर्चा कीजिए। (47वीं बीपीएससी भूगोल)

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