ग्रामीण अधिवास की प्रकृति :
ग्राम ग्रामीण अधिवास का एक उदाहरण है। ग्रामीण अधिवास की परिभाषा और मानदंड आमतौर पर एक देश से दूसरे देश में भिन्न होते हैं। लेकिन, ज्यादातर ग्रामीण अधिवास की प्रकृति [विशेषताएं] निम्नलिखित हैं:
- अधिकांश ग्रामीण आबादी कृषि, पशुपालन, खनन, वानिकी, मत्स्य गतिविधियों और अन्य प्राथमिक गतिविधियों में शामिल होते है।
- ग्रामीण निवासियों के व्यवसाय सीधे भूमि से जुड़े होते हैं।
- ग्रामीण अधिवास में जनसंख्या का आकार छोटा होता है।
- ग्रामीण अधिवास में आमतौर पर जनसंख्या घनत्व कम होता है।
- ग्रामीण अधिवास का क्षेत्रफल प्राय: छोटा होता है।
- ग्रामीण अधिवास में बुनियादी ढांचे जैसे सीवेज, सड़क, उच्च संचार नेटवर्क आदि का अभाव होता है।
- ग्रामीण बस्तियों की प्रति व्यक्ति आय आमतौर पर कम होती है।
- ग्रामीण बस्तियों में व्यापक भूमि उपयोग और एक खुला परिदृश्य होता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त घरों का निर्माण करते हैं।
- भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में; लोग के घरो के छत ढाल वाले होते है जिसके कारण जल छत में रुकता नहीं हैं।
- जल भराव क्षेत्रों में; लोग अपने मकान ऊँचे स्थानों पर बनाते हैं।
- गर्म जलवायु क्षेत्र में; लोग मोटी मिट्टी की दीवारों वाले घरों में रहते हैं।
ग्रामीण अधिवास के प्रकार :
ग्रामीण बस्तियों के प्रकार मुख्य रूप से भौतिक कारकों, सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों और सुरक्षा कारकों जैसे तीन कारकों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। भौतिक कारकों में इलाके की प्रकृति, ऊंचाई, जलवायु और पानी की उपलब्धता शामिल है। सामाजिक-संस्कृति कारकों में सामाजिक संरचना, जाति और धर्म शामिल हैं। सुरक्षा कारक जैसे चोरी और डकैती के खिलाफ सुरक्षा भी ग्रामीण बस्तियों के प्रकारों को तय करने वाले कारक हैं।
उपरोक्त तीन कारकों के आधार पर, ग्रामीण बस्तियों का जनसंख्या घनत्व एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होता है; हम मोटे तौर पर चार प्रकार की ग्रामीण बस्तियों को रख सकते हैं:
- गुच्छित, संकुलित अथवा अकेन्द्रित (क्लस्टर्ड या कॉम्पैक्ट या एग्लोमेरेटेड या न्यूक्लियेटेड )
- अर्ध -गुच्छित या विखंडित (अर्ध-संकुल या खंडित) ।
- पल्लीकृत ( हैमलेट)
- परिक्षिप्त अथवा एकाकी ।
गुच्छित, संकुलित अथवा अकेन्द्रित (क्लस्टर्ड या कॉम्पैक्ट या एग्लोमेरेटेड या न्यूक्लियेटेड ):
संकुलित बस्तियाँ को कॉम्पैक्ट या एग्लोमेरेटेड या न्यूक्लियेटेड सेटलमेंट के रूप में भी जाना जाता है। संकुलित बस्ति में घरों की बीच की दूरिया बहुत ही कम होती हैं। संकुलित बस्तियाँ के रहने का क्षेत्र है वहां के कार्यकारणी क्षेत्र जैसे आसपास के खेतों, खलिहान और चरागाहों से अलग होता है। इस प्रकार के बस्तियों में कुछ पहचानने योग्य पैटर्न जैसे आयताकार, रेडियल, रैखिक, तारा, आदि का प्रारूप देखने को मिलता हैं।
संकुलित ग्रामीण बस्तियों के कारण:
- सड़क, जलमार्ग आदि जैसी संचार सुविधाओं की उपलब्धता:
- उदाहरण के लिए, ग्रामीण बस्तियों के आयताकार पैटर्न आयताकार सड़कों के समानांतर पाए जाते हैं।
- सड़कों और नदियों के समानांतर रेखीय ग्रामीण बस्तियाँ बनती हैं।
- सुरक्षा या रक्षा कारण:
- मध्य भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र और नागालैंड में सुरक्षा की दृष्टि से लोग पास पास में रहना पसंद करते हैं।
- राजस्थान में, लोग उपलब्ध जल संसाधनों के इस्टतम उपयोग के लिए संकुलित रहते हैं।
अर्ध-संकुल बस्तियाँ:
अर्ध-संकुल बस्तियों को खंडित बस्तियों के रूप में भी जाना जाता है। यह दो तरह से बनता है:
- यह विखंडित बस्तियों के प्रतिबंधित क्षेत्रों में संकुलन (क्लस्टरिंग) की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप होता है।
- यह सघन बस्तियों के अलगाव या विखंडन का भी परिणाम है। इसमें , गांव का एक या अधिक वर्ग के लोग मुख्य संकुलित (क्लस्टर) कस्बे से थोड़ी दूर स्वेच्छा या मज़बूरी से रहता है।
- सामान्य तौर पर, प्रमुख समुदाय गाँव के मध्य भाग पर कब्जा कर लेता है जबकि दिहाड़ी मजदूर या समाज के निचले तबके के लोग गाँव के बाहरी हिस्से में बस जाते हैं।
- अर्ध संकुल बस्तियाँ सामान्यतः गुजरात के मैदानी क्षेत्र तथा राजस्थान के कुछ भागों में पाई जाती हैं।
पल्लीकृत ( हैमलेट):
हेमलेटेड बस्तियाँ आमतौर पर भौतिक रूप से अलग की गई बस्तियों के टुकड़े हैं और इसकी कई अलग-अलग इकाइयाँ और विशिष्ट नाम हैं। उदाहरण के लिए पन्ना, परा, पल्ली, नगला, धानी, टोला आदि कुछ परिचित नाम हैं।
बड़े गांवों का विभाजन आमतौर पर सामाजिक और जातीय कारकों से प्रेरित होता है।
हेमलेटेड बस्तियाँ आमतौर पर मध्य और निचले गंगा के मैदानों, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटी में पाई जाती हैं।
परिक्षिप्त अथवा एकाकी:
परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्तियाँ आकर में छोटी होती है और यह अक्सर पहाड़ियों के सुदूर जंगल में अलग-अलग झोपड़ियों या बस्तियों के रूप में पाया जाता है।
यह आमतौर पर मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केरल जैसे उबड़-खाबड़ इलाकों में पाया जाता है।
ग्रामीण अधिवास के प्रतिरूप:
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप यह दर्शाते हैं कि घर एक-दूसरे के संबंध में कैसे स्थित हैं। आसपास की स्थलाकृति और इलाके ग्रामीण बस्तियों के आकार और पैटर्न को प्रभावित करते हैं। अधिवास प्रतिरूप के आधार पर, ग्रामीण अधिवासों के निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रतिरूप हैं:
- रैखिक प्रतिरूप
- आयताकार प्रतिरूप
- गोलाकार प्रतिरूप
- तारे जैसा प्रतिरूप
- टी-आकार, वाई-आकार और क्रॉस-आकार का प्रतिरूप
- दोहरा गाँव
ग्रामीण बस्तियों का रेखीय प्रतिरूप सड़क, रेलवे लाइन, नदी, और घाटी के नहर के किनारे स्थित होता है।
ग्रामीण अधिवासों का आयताकार प्रतिरूप मैदानी क्षेत्रों में पाया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में सड़कें आयताकार होती हैं और एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
Image source: NCERT
झीलों और तालाबों के चारों ओर वृत्ताकार ग्रामीण बस्तियाँ विकसित होती हैं, कभी-कभी गाँवों की योजना इस तरह से बनाई जाती है कि मध्य भाग खुला रहता है और जानवरों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए उन्हें रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
T-आकार की ग्रामीण बस्तियाँ सड़कों (T) के त्रि-जंक्शन पर विकसित होती हैं, जबकि "Y"-आकार की बस्तियाँ उन स्थानों के रूप में विकसित होती हैं जहाँ दो सड़कें तीसरे पर मिलती हैं और इन सड़कों के किनारे घर बनाए जाते हैं।
नदी के दोनों किनारों पर जहाँ पुल या नौका होती है वहाँ दोहरी ग्राम बस्तियाँ विकसित हो जाती हैं।
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