प्रश्न ।
कश्मीर मामले में भारत मध्यस्थता का विरोध क्यों करता है ?
( UPPSC, UP PCS Mains General Studies-II/GS-2 2018)
उत्तर।
जम्मू और कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का प्रमुख कारण है। कश्मीर संघर्ष में मध्यस्थता पर भारत ने लंबे समय विरोध किया है।
भारत ने कश्मीर मुद्दे पर तृतीय-पक्ष मध्यस्थता का विरोध करने का प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -
द्विपक्षीय दृष्टिकोण:
भारत ने लगातार कहा है कि कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है। भारत अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता को अपनी संप्रभुता पर उल्लंघन के रूप में देखता है और मानता है कि संघर्ष को केवल प्रत्यक्ष संवाद के माध्यम से हल किया जा सकता है।
शिमला समझौता:
1972 में हस्ताक्षरित शिमला समझौता, भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों के लिए रूपरेखा स्थापित करता है। यह शांतिपूर्ण साधनों और द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से कश्मीर सहित सभी बकाया मुद्दों को हल करने की प्रतिबद्धता पर जोर देता है। शिमला समझौता किसी भी तृतीय-पक्ष की भागीदारी को अस्वीकार करता है।
क्षेत्रीय अखंडता:
हम (भारत) कश्मीर क्षेत्र को अपने संप्रभु क्षेत्र के अभिन्न अंग के रूप में देखते हैं।तृतीय-पक्ष की मध्यस्थता से हमारी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को कम करता है। हम (भारत) का तर्क है कि इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए एक स्थायी और स्वीकार्य समाधान सुनिश्चित करने के लिए इस मामले को द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से पूरी तरह से हल किया जाना चाहिए।
तृतीय-पक्ष मध्यस्थता पर विश्वास की कमी:
तृतीय-पक्ष की मध्यस्थता में हमें निष्पक्षता की कमी दिखती है। हम मानते है कि बाहरी मध्यस्थों को कश्मीर संघर्ष के ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बारीकियों की व्यापक समझ नहीं हो सकती है, संभवतः वे अनुचित निर्णय ले सकते है। भारत ने अक्सर ऐसे उदाहरणों का हवाला दिया है जहां यह अंतर्राष्ट्रीय संगठनों या देशों ने पाकिस्तान के पक्ष में एक रुख अपनाया है, जिससे मध्यस्थता के प्रति हमारे संशय को और मजबूत किया गया है।
उपरोक्त कारणों से हमने कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता को हमने विरोध किया है।
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